सावन को मनभावन और सुंदर बनानेवाली कजरी की पटरानी सुंदर बाई
चंदन तिवारी
सावन चल रहा है. सृष्टि,स्त्री और प्रकृति का महीना. लोकगीतों का महीना.लोकगीतों की दृष्टि से देखें तो कोई एक महीना ऐसा नहीं है, जिसमें इतने तरीके के गीत गाये जाने का चलन रहा हो.गुणी-ज्ञानीजन तो यह भी कहते हैं कि भले ही बसंत को ऋतुओं का राजा कहते हों लेकिन मौसम की रानी तो सावन ही है. सावन के मेघ पर ही बसंत के उल्लास और रंग का भविष्य टिका होता है. अब अगर इसे लोकगीतों की दृष्टि से देखें तो एक माह के सावन में गीतों की वेरायटी है. शुरुआत खेती के गीतों से होती है, क्योंकि यह रोपनी का मौसम होता है. फिर सावन शुरू होते ही शिव का गीत गाया जाने लगता है. कजरी और झूला गीत तो इसकी पहचान में शामिल है ही. हरियाली तीज आता है. आखिरी का पांच दिन तो यह राधा और कृष्ण के नाम हो जाता है. झूलनोत्सव का हो जाता है. और इस बीच सावन में अगर 15 अगस्त आ गया तो देशभक्ति गीतों का उल्लास अलग रहता है. और आखिरी दिन तो यह भाई बहन के पर्व रक्षाबंधन का होता ही है.
लेकिन सावन की एक बड़ी पहचान कजरी गीतों से है. कजरी और सावन एक दूसरे के पर्याय हैं. जब कजरी की बात चलती है तो सबसे पहले नाम मिरजापुर का ही आता है. मान्यता है कि कजरी की विधा वहीं से निकली है, जिसे दुनिया में फैलाया बनारस ने. कई कहानियां है कजरी के पीछे. कोई इसे कजली देवी से जोड़ता है, जिनका मंदिर है उस इलाके में विंध्यवासिनी देवी नाम से, तो कोई कजली नामक नायिका से, जिसने प्रेम की तड़प के साथ अपने दुख और बिरह को स्वर देना शुरू किया तो कजली गायन की विधा जन्मी, जो बाद में कजरी के नाम से जाना गया. खैर, कजरी की मिथकीय कहानियां तो ढेरों है लेकिन हकीकत की कहानी यही है कि कजरी गायन को मिरजापुर और बनारस के कजरीबाजों ने आगे बढ़ाया. इस कजरी ने, दोनों शहरों और इलाकों को एक सूत्र में जोड़ा. कजरीबाजी एक परंपरा थी, जिसमें सवाल-जवाब का दौर चलता था. जैसे कव्वाली में देखते हैं, दुगोला में देखते हैं, वैसे ही. रात-रात भर कजरीबाजी होती थी. यह पूरे सावन चलता था. सावन में कजरी का अखाड़ा लगता था. और जब हम कजरीबाजों की बात करते हैं तो एक नाम प्रमुखता से उभरकर आता है. वह नाम है सुंदर बाई का. कजरी की रानी कह सकते हैं उन्हें. हम सब कम जानते हैं उनके बारे में लेकिन एक जमाने में बरसाती चांद नाम से लिखित उनकी किताब बहुत मशहूर थी कलाकारों के बीच. उन्हें खुद ही बरसाती चांद कहा जाता था. सुंदर बाई की ही मूल रचना है नागर नइया जाला.. जो आज दुनिया में मशहूर है.सुंदर एक सुशील लड़की थी, जिसका अपहरण तब के मिसिर नामक गुंडे ने कर लिया था. रखैलन बनाकर. मिसिर अंग्रेजों का दलाल था. सुंदर को यह बात अखरती थी. वह सुंदर पर जुल्म भी ढाता था. बनारस के एक बड़े नामी पहलवान दाता नागर थे. नागर कहते थे सब उनको. एक बार मिसिर गुंडा सुंदर को लेकर नागर के बुलावे पर भांग छानने गया. नागर पहलवान अंग्रेजों के दुश्मन थे. देशभक्त थे. बात निकल गयी और नागर और मिसिर में लड़ाई छिड़ गयी. मिसिर भाग गया. सुंदर वहीं रह गयी. सुंदर ने नागर को अपनी कहानी सुनाई. अगली बार फिर से मिसिर नागर पर आक्रमण करने आया. इस बार मिसिर नागर के हाथों मारा गया. सुंदर को नागर ने बहन माना. मिसिर की हत्या के जुल्म में नागर को कालापानी की सजा हुई. और उसके बाद सुंदर ने अपने भाई के बिरह के गीत रचने शुरू किये. इस तरह से देखें ने सुंदर ने अपने समय में प्रेम, बिरह, आजादी और भाई बहन के प्रेम, सभी तरीके के गीतों को रचा और लोगों को सुनाया. सुंदर के गीत दुनिया में फैल गये लेकिन हम सुंदर को नहीं जानते. उनकी कजरी दुनिया सुनती है लेकिन कजरी की उस पटरानी को हम नहीं जानते. लोकविधा में यह चुनौती भी रही है. हम मूल रचनाकार को गौण कर देते हैं. जैसे हमरी अंटरिया ठुमरी को दुनिया सुनती है लेकिन उसके मूल रचनाकार मिरजा जमाल को हम याद नहीं करते. कितना सुंदर होता कि इस सावन हम सुंदर जैसे गुमनाम रचनाकारों को अच्छे से याद करते.
Write a comment ...